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जानिए महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य पांडवों से अधिक शक्तिशाली होने के बावजूद भी युद्ध में क्यों मारे गए
जिस समय महाभारत का युद्ध चल रहा था. गुरु द्रोणाचार्य पांडवों पर भारी पड़ रहे थे. गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा लेकर ही पांडव युद्ध नीति में प्रांगण हुए थे. अपने गुरु से एक शिष्य किस प्रकार जीत सकता है इसका अंदाजा आप सभी लगा सकते हैं. गुरु द्रोणाचार्य के भीषण अस्त्र-शस्त्रों से पांडवों के सैनिक युद्ध में लगातार मारे जा रहे थे. यह सब देखते हुए श्री कृष्ण भगवान ने पांडवों को एक सलाह दी. उन्होंने बताया कि गुरु द्रोणाचार्य को मारने के लिए तुम्हें राजनीति से काम लेना होगा. इसके बाद युद्ध में भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी का वध कर दिया और पूरी सेना में यह अफवाह फैला दी कि अश्वत्थामा मारा गया है.गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा था. जब गुरु द्रोणाचार्य ने इस बात को सुना तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ क्योंकि अश्वत्थामा बहुत शक्तिशाली था. गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से पूछा क्या यह बात सत्य है. युधिष्ठिर हमेशा सत्य वचन कहते थे. युधिष्ठिर ने गुरु द्रोणाचार्य से कह दिया कि अश्वत्थामा मारा जा चुका है. अपने पुत्र की मृत्यु से द्रोणाचार्य बहुत दुखी हुए. उन्होंने अपने सारे अस्त्र शस्त्र त्याग दिए और एक चित्त होकर बैठ गए. इसी अवसर का लाभ उठाकर मगध देश के युवराज ने अपनी तलवार से गुरु द्रोणाचार्य का सर काट दिया. गुरु द्रोणाचार्य अधर्म का पक्ष ले रहे थे. इसलिए उनका युद्ध में वध होना स्वाभाविक था.क्योंकि जब भी कोई अधर्म के रास्ते पर चलता है तो उसका विनाश होना निश्चित है.
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