Friday 21 February 2020

Robot Kiyosaki की Book Rich Dad Poor Dad से सीखे फाइनेंसियल मैनजमेंट के सिद्धान्त


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Robot Kiyosaki की Book Rich Dad Poor Dad से सीखे फाइनेंसियल मैनजमेंट के सिद्धान्त

दोस्तों इस पोस्ट को मैंने डॉ रोबोट कियोसाकी की BOOK RICH DAD POOR DAD की मदद से बनाया है। इस BOOK  मे रोबोट कियोसाकी कहते है कि उनके जीवन में उन्हे दो डैडी मिले थे। जिसमे एक उनके असली पिता जिनहे वो गरीब डैडी कहते हैं और दूसरे उनके दोस्त के पिता जिनहे वो अमीर डैडी कहते हैं।

इस BOOK मे डॉ. रॉबर्ट कियोसकी हमें बताते हैं अमीर लोग अपने बच्चों को ऐसा क्या सिखाते हैं जिससे वह कम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी अधिक पैसे कमाते हैं, जबकि गरीब लोग अधिक शिक्षित होने के बावजूद भी जीवन भर गरीब ही रह जाते हैं।

रोबोट कियोसाकी गरीब लोगों के जीवन को चूहा दौड़ कहते हैं। उनके अनुसार यदि आप कड़ी मेहनत करने वाले लोगो की जिंदगी को देखेंगे तो आपको उसमें एक ही जैसा सफर नजर आएगा 

जैसे बच्चा पैदा होता है, स्कूल जाता है, माता पिता खुश हो जाते हैं, क्योंकि बच्चे को स्कूल में अच्छे नंबर मिलते हैं, उसका दाखिला कॉलेज में हो जाता है। जब बच्चा पर पढ़ लिखकर कमाने लायक हो जाता है और किसी नौकरी की तलाश करता है तो वह बच्चे को उस समय काम मिल जाता है। शायद  अब वह वकील, अकाउंटेंट या डॉक्टर बन जाता है या सरकारी नौकरी करने लगता है। अब उसके पास पैसे आने लगते हैं। जब उस युवक के पास में पैसे आते हैं तो वह उन जगहों पर जाता है, जहां पर उसकी उम्र के नौजवान होते हैं। वे डेटिंग करते हैं, मस्ती करते हैं और कभी कबार शादी भी कर लेते हैं।  जीवन में मजा आ जाता है। क्योंकि आजकल पुरुष और महिलाएं दोनों नौकरी करते हैं। दो तनख्वाहै  बहुत अच्छी लगती हैं। पति पत्नी को लगता है कि उनकी जिंदगी सफल हो गई है। उसके बाद वे घर का टेलिविजन बदलने का फैसला करते हैं। छुट्टियां मनाने के लिए कहीं बाहर चले जाते हैं और एक अच्छा घर और नयी कार खरीद लेते हैं।  

अब धीरे धीरे उनके बच्चे बड़े होने लगते हैं। बच्चो की पढ़ाई के खर्चे और दूसरे खर्चे दैनिक जीवन में आ जाते हैं। जिससे उनको लगता है कि अब उन्हें पैसे कमाने के लिए और अधिक मेहनत करनी चाहिए  और वह कहीं दूसरी जगह पर पार्ट टाइम ढूंढ लेते है। फिर जैसे-जैसे आमदनी बढ़ती है उन्हें अपनी आमदनी पर सरकार को टैक्स भी देना होता है। घर खरीदने पर भी उन्हें टैक्स देना पड़ता है। दूसरे बिल चुकाने पर भी टैक्स देना पड़ता है। ऐसे करते-करते उनकी पूरी तनख्वाह टैक्स चुकाने में ही चली जाती है। अब जब उस बड़ी हुई तनख्वाह को घर लेकर आते हैं तो हैरान होते हैं कि इतना सारा पैसा आखिर कहां चला जाता है। इसके साथ उन्हें अपने रिटायरमेंट के लिए पैसा बचाने की चिंता भी सताने लगती है इसी को देखते हुए रोबोट कियोसाकी ने अपनी बुक में इसे चूहा दौड़ का नाम दिया है।  

डॉ रॉबर्ट इस चूहा दौड़ से बाहर निकलने के लिए दोनों डैडी से सीखते है। वो कहते है कि मैरे दोनों ही डैडी अपने करियर में सफल थे। दोनों ने जिंदगी भर कड़ी मेहनत की थी और उन्होंने काफी पैसा कमाया था। परंतु उनमें से एक पूरी जिंदगी पैसे के लिए परेशान होता रहा और दूसरा हवाई के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक बन गया।  

एक के मरने पर उसके परिवार, चर्च और जरूरतमंदों को करोड़ों डॉलर की दौलत मिली और दूसरा अपना पीछे कर्ज छोड़कर मरा। दोनों डैडी इरादे के पक्के चमत्कारी और प्रभावशाली थे। दोनों ने मुझे सलाह दी परंतु उनकी सलाह एक सी नहीं थी।
दोनों ही डैडी प्रभावशाली थे। इसलिए मैंने दोनों से ही सीखा मुझे दोनों की सलाह पर ही सोचना पड़ता था। इस तरह सोचते सोचते मैंने यह भी जान लिया कि किसी व्यक्ति के विचार उसकी जिंदगी पर कितना पर जबरदस्त प्रभाव डालते हैं

उदाहरण के तौर पर एक डैडी को यह कहने की आदत थी मैं इसे नहीं खरीद सकता। जबकि दूसरे डैडी  इन शब्दों के इस्तेमाल से चिढ़ते थे और जोर देकर कहा करते थे कि मुझे इसके बजाय यह कहना चाहिए मैं इसे कैसे खरीद सकता हूं। पहला वाक्य नकारात्मक है और दूसरा प्रश्नवाचक। एक में बात खत्म हो जाती है और दूसरे में आप सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

मेरे जल्द अमीर बनने वाले डैडी ने मुझे समझाया कि जब हम कहते हैं कि मैं  इसे नहीं खरीद कर सकता तो हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है। इसके बजाय जब हम खुद से यह सवाल पूछते हैं कि मैं इसे कैसे खरीद सकता हूं तो हमारा दिमाग काम करने लगता है। हमारे दिमाग को एक काम मिल जाता है और वह उस काम को करने मे जुट जाता है।  

वो हमारे दिमाग से कसरत करवाना चाहते थे। क्योंकि उनके ख्याल से दिमाग दुनिया का सबसे ताकतवर कंप्यूटर है। जिस प्रकार जिम मे रोज कसरत करने से शरीर मजबूत होता है। उसी प्रकार दिमागी कसरत से दिमाग तेज होता जाता है और यह जितना तेज होता है। आप उतना ही ज्यादा पैसा कमा सकते है। 

हालांकि दोनों ही डैडी अपने काम में कड़ी मेहनत करते थे। परंतु पैसे के मामले मैं एक डैडी की आदत ऐसी थी कि वे अपने दिमाग को सुला देते थे। जबकि दूसरे डैडी अपने दिमाग को लगातार कसरत करवाते रहते थे। इसका दीर्घकालीन परिणाम यह हुआ कि एक डैडी आर्थिक रूप से बहुत अमीर होते चले गए जबकि दूसरे डैडी लगातार गरीब होते गए। 

दोनों डैडी की विचारधारा में जमीन आसमान का अंतर था। गरीब डैडी सिख देते थे कि मेहनत से पढ़ो ताकि तुम्हें किसी अच्छी कंपनी में नौकरी मिल जाए जबकि अमीर डैडी कहते थे कि इस प्रकार पढ़ो कि तुम्हें कंपनी को खरीदने का मौका मिल जाए। एक का कहना था जहां पैसे का सवाल हो सुरक्षित कदम उठाओ, खतरा मत उठाओ। दूसरे का कहना था खतरों का सामना करना सीखो।

एक डैडी ने उन्हें बताया कि अच्छी नौकरी तलाशने के लिए अच्छा सा बायोडाटा कैसे लिखा जाए। दूसरे ने उन्हे यह सिखाया कि कैसे मजबूत फ़ाईनंशियल योजनाए बनाई जाए जिससे मैं नौकरियां दे सकूं। उदाहरण के तौर पर मेरे गरीब डैडी अपने बारे मे हमेशा यह कहा करते थे मैं कभी अमीर नहीं बन पाऊंगा और उनकी यह भविष्यवाणी सही साबित हुई।  

दूसरी तरफ मेरे दूसरे डैडी हमेशा खुद को अमीर समझते थे। एक बार बड़े आर्थिक झटके के बाद वो  दीवालियापन की कगार पर थे। तब भी वह खुद को अमीर आदमी ही कहते रहे। वह अपने समर्थन में यह कहते थे गरीब होने और पैसे ना होने में फर्क होता है पैसा पास में ना होना अस्थाई होता है जबकि गरीबी स्थाई है।  

गरीब डैडी यह भी कहते थे कि मेरी पैसे में कोई रुचि नहीं है पैसा महत्वपूर्ण नहीं है। जबकि अमीर डैडी हमेशा कहते थे पैसे में बहुत ताकत है। रोबोट कियोसाकी के अनुसार गरीब डैडी इसलिए गरीब नहीं थे क्योंकि वो कम कमाते थे। बल्कि इसलिए गरीब थे क्योंकि उनके विचार और काम गरीबो की तरह थे। दोनों डैडी से जुड़े होने के कारण बचपन से ही वे कन्फ्युज रहते थे कि मैं किस तरह की विचारधारा अपनाऊ।

दोनों ही शिक्षा और ज्ञान को महत्वपूर्ण मानते थे। परंतु क्या सीखा जाए इस बारे में दोनों की राय अलग अलग थी। एक चाहते थे मैं पढ़ाई में कड़ी मेहनत करो डिग्री लो और पैसे कमाने के लिए अच्छी सी नौकरी ढूंढ लूं। वह चाहते थे कि मैं एक पेशेवर अधिकारी वकील या अकाउंटेंट बन जाऊं या एमबीए कर लूं।  

दूसरे डैडी मुझे प्रोत्साहित करते थे कि मैं अमीर बनने का रहस्य सीख लूं। यह समझ लूं कि पैसा किस तरह काम करता है और यह जान लूँ कि इससे अपने लिए कैसे काम कराया जाता है। वो कहते थे कि  मैं पैसे के लिए काम नहीं करता, पैसा मेरे लिए काम करता है। इन शब्दों को वह बार-बार दोहराए करते थे। अंत मैं मैंने यह फैसला किया कि पैसे के बारे में अपने अमीर डैडी की बात सुनूंगा और उनसे सीख लूंगा। यह फैसला करने का मतलब था अपने गरीब डैडी की बातों पर ध्यान ना देना। हालांकि उनके पास कॉलेज की बहुत सी डिग्रियां थी जो मेरे अमीर डैडी के पास नहीं थी।

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