आप आप सभी ने TV पर महाभारत तो देखी ही होगी. महाभारत मे यह दिखाया गया है कि किस प्रकार से पांडवों ने 100 कौरवों का अंत करके अपना राज्य हासिल किया था. महाभारत इसलिए भी अधिक लोकप्रिय है. क्योंकि इसमें श्री कृष्ण भगवान ने गीता का उपदेश दिया था. श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन का सारथी बनकर पांडवों की सहायता की थी. आप सभी ने श्री कृष्ण भगवान की भूमिका और कौरव पांडवों का युद्ध तो देखा. लेकिन शायद आपको यह मालूम ना हो कि 100 कौरवो का जन्म किस प्रकार से हुआ था. गांधारी ने सभी 100 कौरवों को जन्म दिया था. इसके पीछे की वास्तविक कहानी आज हम आपको बताएंगे.
एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर पहुंचे. गांधारी ने महर्षि वेदव्यास की बहुत सेवा की. गांधारी की सेवा से प्रसन्न होकर महर्षि वेदव्यास ने उसे कोई वर मांगने के लिए कहा. उस समय गांधारी ने अपने पति के समान 100 बलशाली पुत्र होने का वर मांगा. इसके बाद गांधारी का गर्भ ठहरा. गांधारी का गर्भ लगभग 2 साल तक पेट में ही रहा. इससे गांधारी घबरा गई और उसने अपना गर्भ गिरा दिया. उसके पेट से लोहे के समान एक पिंड निकला. महर्षि वेदव्यास ने अपनी शक्ति से यह सब देख लिया था. तब उन्होंने गांधारी के पास आकर बोला कि तुम जल्दी से 100 कुंड बनवा लो और उन्हीं घी से भर दो. इसके बाद उन कुंडो को घी से भरवा कर सुरक्षित स्थान पर रख दिया गया. इसके बाद गांधारी के पेट से निकले हुए मांस के पिंड पर जल छिड़का गया. जल छिड़कने से उस पिंड के 101 टुकड़े हो गए. महर्षि ने कहा इन 101 टुकड़ों को घी से भरे हुए कुंडो में डाल दो.इसके बाद उन्होंने गांधारी को कहा कि इन कुंडो को 2 साल बाद ही खोलना. इतना कहकर महर्षि वेदव्यास ने तपस्या करने हिमालय पर चले गए. समय आने पर ही इन कुंडो से पहले दुर्योधन और बाद में गांधारी के 99 पुत्र तथा एक कन्या उत्पन्न हुई.
दोस्तों अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो पोस्ट को लाइक और शेयर जरूर करें ताकि हम आपके लिए ऐसी जानकारी लाते रहें.
No comments:
Post a Comment